आँगन-आँगन दीप धरें
यह अंधकार बुहरें
होता ही आया तम से रण
पर तम से तो हारी न किरण
जय करें वरण ये अथक चरण
भू-नभ को नाप धरें
आँगन-आँगन दीप
धरें
यह अंधकार बुहरें
लोक-हृदय आलोक-लोक हो
शोक-ग्रसित भव विगत-शोक हो
तमस-पटल के पार नोक हो
यों शर-संधान करें
आँगन-आँगन दीप
धरें
यह अंधकार बुहरें
डूबे कलरव में नीरवता
भर दे कोमलता लता-लता
पत्ता-पत्ता हर्ष का पता
दे, ज्योतित सुमन झरें
आँगन-आँगन दीप
धरें
यह अंधकार बुहरें
-डॉ. राजेन्द्र गौतम
२० अक्तूबर २००८
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