सखि! दीप धरो!
काली-काली अब रात न हो,
घनघोर तिमिर बरसात न हो,
बुझते दीपों में हौले-हौले,
सखि! स्नेह भरो!
सखि! दीप धरो!
दमके प्रिय-आनन हास लिए,
आगत नवयुग की आस लिए,
अरुणिम अधरों से हौले-हौले,
सखि! बात करो!
सखि! दीप धरो!
बीते बिरहा के सजल बरस
गूँजे मंगल नव गीत सरस
घर आए प्रियतम, हौले-हौले
सखि! हीय हरो!
सखि! दीप धरो!