दशहरा है तो क्या कर दूँ, दिवाली
है तो क्या कर दूँ
हमारी जेब जब खाली की खाली है तो क्या कर दूँ
तुम्हारे पास नेता के लिए अलफ़ाज़ अच्छे हैं
हमारे पास बस अश्लील गाली है तो क्या कर दूँ
इसे समझाऊँ तो वो लोग हत्थे से उखड़ते हैं
मुहल्ले का मुहल्ला जब बवाली है तो क्या कर दूँ
किये माथे लगा कर फ़ैसले मंज़ूर पंचों के
मगर बहती वहीं पर आज नाली है तो क्या कर दूँ
हमारी जगह जिसने नौकरी पाई वो अव्वल था
उसी की पर सनद संपूर्ण जाली है तो क्या कर दूँ
बहुत दिन बाद मेरी आँख जिससे लड़ गई यों ही
वही इस शहर के गुंडे की साली है तो क्या कर दूँ
वीरेंद्र जैन
२० अक्तूबर २००८
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