दूर
उजालों की बस्ती है
पथ में भी अंधियार बहुत है।
नफ़रत नागफनी बन फैली
पग-पग हाहाकार बहुत है।
फिर भी ज़िन्दा है मानवता
क्योंकि जग में प्यार बहुत है।
अंधियारे से आगे
देखो
सूरज है, उजियार बहुत है।
काँटों के जंगल से आगे
खुशबू भरी बयार बहुत है।
दीवारें मत खड़ी
करो तुम
पहले से दीवार बहुत हैं।
नहीं गगन छू पाए तो क्या
मन का ही विस्तार बहुत है।
पूजा करना भूल गए
तो
छोटा-सा उपकार बहुत है।
रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु
२७
अक्तूबर २००८