शुभैषी
बद्दुआओं का
असर होता अगर,
वीरान
यह आलम
कभी का ।
हो गया होता !
जाग उठता
हर कदम पर
आदमी का दर्प-दुर्वासा!
चिरंतन
प्रेम का सोता
रसातल में
कभी का
खो गया होता!
कहाँ हो तुम
पुनीत शकुंतले!
अभिशाप की
जीवंत पंकिल प्रतिक्रिया!
कहाँ हो तुम?
24 दिसंबर 2007
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