अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में महेंद्र भटनागर की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अभिलषित
आसक्ति
गौरैया
पाताल पानी की उपत्यका से

गीतों में-
उत्सर्
एक दिन
जीने के लिए
दीपक
धन्यवाद
बस तुम्हारी याद
भीगी भीगी भारी रात

शुभैषी
सहसा
यह न समझो

कविताओं में-
आस्था
ओ भवितव्य के अश्वों!

  ओ भवितव्य के अश्वों!

ओ भवितव्य के अश्वों!
तुम्हारी रास
हम
आश्वस्त अंतर से सधे
मज़बूत हाथों से दबा
हर बार मोड़ेंगे!

वर्चस्वी,
धरा के पुत्र हम
दुर्धर्ष,
श्रम के बंधु हम
तारुण्य के अविचल उपासक
हम तुम्हारी रास
ओ भवितव्य के अश्वों!
सुनो
हर बार मोड़ेंगे!

ओ नियति के स्थिर ग्रहों!
श्रम-भाव तेजोदृप्त
हम
अक्षय तुम्हारी ज्योति
ग्रस कर आज छोड़ेंगे!
तितिक्ष अडिग
हमें दुर्ग्रह नहीं अब
अंतरिक्ष अगम्य!
निश्चय
ओ नियति के
पूर्व निर्धारित ग्रहो!
हम. . .
हम तुम्हारी ज्योति
ग्रस कर आज छोड़ेंगे!

ओ अदृष्ट की लिपियो!
कठिन प्रारब्ध हाहाकार के
अविजेय दुर्गों!
हम उमड़
श्रम-धार से
हर हीन होनी की
लिखावट को मिटाएँगे,
मदिर मधुमान
श्रम संगीत से
हम
हर तबाही के
अभेद दुर्ग तोड़ेंगे!

ओ भवितव्य के अश्वों!
तुम्हारी रास मोड़ेंगे!

16 मई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter