दीपक
मूक जीवन के अंधेरे में, प्रखर अपलक
जल रहा है यह तुम्हारी आस का दीपक!
ज्योति में जिसके नई ही आज लाली है
स्नेह में डूबी हुई मानो दिवाली है!
दीखता कोमल सुगन्धित फूल-सा नव-तन,
चूम जाता है जिसे आ बार-बार पवन!
याद-सा जलता रहे नूतन सबेरे तक,
यह तुम्हारे प्यार के विश्वास का दीपक!
२३ फरवरी २००९ |