आस्था
सींचो!
कण-कण को सींचो!
हर सूखे बिरवे को पानी दो,
टूटे उखड़े झाड़ों को
अभिनव बल
फिर-फिर बढ़ने की
तेज़ रवानी दो
हर सूखे बिरवे को पानी दो!
नंगी-नंगी शाखों को
जल-कण मुक्ता भूषण दो
चिर बाँझ धरा को
जल का आ लगन दो
शीतल आ लगन दो!
शायद
गहरी-गहरी परतों के नीचे
जीवन सोया हो,
तम के गलियारों में खोया हो!
सींचो
अंतस की निष्ठा से सींचो,
शायद
चट्टानों को फोड़ कहीं,
नव अंकुर डहडहा उठें,
बाँझ धरा का गर्भस्थल
नूतन जीवन से कसमसा उठे!
सींचो
कण-कण को सींचो!
हर मिट्टी में गर्मी है
हर मिट्टी पूत प्रसव-धर्मी है!
16 मई 2007 |