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अनुभूति में महेंद्र भटनागर की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अभिलषित
आसक्ति
गौरैया
पाताल पानी की उपत्यका से

गीतों में-
उत्सर्
एक दिन
जीने के लिए
दीपक
धन्यवाद
बस तुम्हारी याद
भीगी भीगी भारी रात

शुभैषी
सहसा
यह न समझो

कविताओं में-
आस्था
ओ भवितव्य के अश्वों!

 

अभिलषित

दिन भर —
धरती पर लेटी पसरी
रेशम जैसी चिकनी-चिकनी दूब से,
आँगन में उतरी
खुली-खुली फैली बिखरी
हेमा-हेमा धूप से,
यह अलबेला एकाकी
जम कर खेला !
दिन भर खेला !

दिन भर —
ताजे़ टटके गदराए
फूलों की छाँह में, हरिआए - हरिआए
शूलों की बाँह में,
उनकी मादक-मादक गंधों में
अटका-भटका;
ऊला-भूला !

शर्मीली-शर्मीली भोली
कलियों की,
लम्बी-लम्बी पतली-पतली
फलियों की, डालों-डालों झूला !
लिपट-लिपट कर
टहनी-टहनी पत्ती-पत्ती झूला !
दिन भर झूला !

दिन भर —
सुन्दर रंगों छापों वाली साड़ी पहने
उड़ती मुग्धा तितली पर,
वासन्ती रंग-रँगी
मदमाती प्रेम-प्रगल्भा
प्रौढ़ा सरसों पर, जी भर राँचा,
संग-संग खेतों-खेतों नाचा !
दिन भर नाचा !

दिन भर —
इमली के
अमरूदों के पेड़ों पर चोरी-चोरी डोला!
झरबेरी के कानों में
जा-जा, चुपके-चुपके
जाने क्या-क्या बोला !
दिन भर डोला !

१७ सितंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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