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अनुभूति में शैलेन्द्र चौहान की
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संकलन में
गुच्छे भर अमलतास-मरुधरा
                -आतप
                -विरक्ति

  भद्रावती

'सिलिका जेल'
नमी सोखा हुआ
सुंदर नीला और बैंगनी-सा
चमकता
आकर्षित करता दृष्टि सहज

होता सुखकर सफेद
चमक और लावण्य से रहित
वीरान पृथ्वी की तरह
दूर-दूर तक नहीं दीखता
हरी दूब का कोई एक कुश

मरुस्थल की मरीचिका
जल होना जीवन
आता न समझ
तीव्र आभास और अहसास के साथ

बह रहे हों जब झरने ही झरने
बैतूल से इटारसी और होशंगाबाद से
बुदनी तक
जंगल हों हरे कंच
सोखकर नमी वातावरण की
रणथंभौर के वन
इतराएँ प्रगल्भ
गो सावन और भाद्रपद में
सूखी हो धरा

कंकड़ और रेत
दूधिया दाँतों से पटे हों नदी नाले
पथरीले पठ्ठों का बँधा पानी
सड़ जाए
दो अगंतुकों के स्नान से
दो ही दिनों में
दुर्भाग्य नहीं तो
क्या इसको कहेंगे?

छटपटाहट
बिन जल मीन की

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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