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अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

ग़ज़ल

रोज़ जीता हूँ रोज़ मरता हूँ
जुल्म खुद अपने साथ करता हूँ।

भीड़ में खो गया कहीं शायद
अपना चेहरा तलाश करता हूँ।

मैं ही मुल्ज़िम हूँ मैं ही मुंसिफ हूँ
इसलिए फैसले से डरता हूँ।

सामना हो तो सर झुका लूँगा
पीठ पीछे तो मैं मुकरता हूँ।

वक्त भी किस तरह मेहरबाँ है
न तो हँसता न आह भरता हूँ।

गुनगुनाये नदी ख़यालों की
राह से उसकी जब गुज़रता हूँ।

अपने पाँवों में बाँध कर मंज़िल
मैं सफ़र यों तमाम करता हूँ।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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