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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

 

गाँव में अलाव संकलन

दिन गाढ़े के आए


 

अगहन बीते, बड़े सुभीते
माघ-पूस सर छाये।
दिन गाढ़े के आये!!

जूँ न रेंगती, रातों पर, दिन
हिरन चौकड़ी जाता।
पाले का, मारा सूरज
मौसम के, पाँव दबाता।।
धूप लजाई, ज्यों भौजाई, लाज
बदन पर छाये।
दिन गाढ़े के आये!!

पड़े पुआलों, पौ फटता अब
संझवट जमे मदरसों।
दुपहरिया, सोना-सुगंध की
गाँठी जोरे सरसों।।
रात बितानी, किस्सा कहानी
बैठ अलाव जलाये!
दिन गाढ़े के आये!!

उठो! न पड़े गुजारा, दिन
ठाकुर की चढ़ा अटारी।
मरे, मजूरों की बैरी
इस जाड़े की महतारी।।
पठान छाप गाढ़ा पर ही
महतो का, जाड़ा जाये!
आगे, राम कहानी अपनी
अब न, बखानी जाये।।

- रविशंकर


sa`aot : AMQaD, maoM dUba 
Anaaimaka p`kaSana¸ 185 nayaa baOrhnaa
[laahabaad 

 

सर्द झोंके

ये हवा के सर्द झोंके
बेतक़ल्लुफ़ दोस्त की बातों सरीखे
ये बडे बेदर्द झोंके
ये गोली से
ये गाली से
निकलती जो दुनाली से
प्रबन्धक सेठ के मुँह से
होटल में दुकानों में
ये ज़ख्मों से
ये फोडो से
ये निर्मम क्रूर कोडों से
जो मेहनत कर थके मांदे
रुके मजदूर पर बरसे
अभ्रक की खदानो में
ये झिडकी से
ये तानों से
ये शिकवों से उलाहनों से
ये पत्थर से उस गोफन के
जिसे मांसल कलाई ने
घुमाकर फेंक मारा हो
मेढों से मचानो से
झेलता बेबस जमाना
किस तरह चुपचाप होके
ये हवा के सर्द झोके।।

- रामविलास शर्मा

 

 

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