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अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

गहराता है एक कुहासा

सूखे खेतों भूखे गाँवों
गहराता है एक कुहासा!

तारकोल रंग कर सूरज पर
प्रखर प्रकाशित, हैं उल्काएँ,
संभावी, इतिहास बाँच कर
सिसके गीत, मरसिया गाए,
बाँध गई विस्तार गगन का -
एक अजानुबाहु परिभाषा!
गहराता है एक कुहासा!

तेज़ नमक अनुभव, देती है
सड़ी व्यवस्था खुले ज़ख़म में,
नभ पीला पड़ता जाता है
रंग उड़ते रहने के गम में,
कलियों के नाखून तेज़ हैं
काँटों का दिल नरम छिला-सा!
गहराता है एक कुहासा!

बाहर सड़कों चौराहों को
रौंद रही, भारी ख़ामोशी,
भीतर, गला फाड़ कर चीखे
एक सभ्यता पाली पोसी,
ऋषि दधीचि का चेहरा ओढ़े
अट्टहास करते दुर्वासा!
गहराता है एक कुहासा!

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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