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अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

गाँव और घर का भूगोल

पगडंडी भटक गई
रूठ गए पाहुन
झूठ हुए सुबह-शाम-
कागा के बोल,
बदल गया गाँव और
घर का भूगोल!

खोए-खोए से हैं-
ओसार और बरोठे
लील गए कोहबर
को कोठे दर कोठे,
पर्दे में छिपे नहीं
घर भर की पोल!

अमराई फले और-
फूले बँटवारे
चौपालें चुगली में
लेती चटखारे,
पेड़ भी हवाओं में
ज़हर रहे घोल!

राजनीति गाँव-गाँव
पर रही पसार
वोटों में सिमट गई
जीत और हार,
हवा में परिंदे भी
पंख रहे तोल!

बदल गया गाँव और
घर का भूगोल!!

२८ जनवरी २००८

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