हम अगस्त्य के
वंशज
हम अगस्त्य के
वंशज ठहरे -
खारे आँसू पीते,
रोज़ सिसकियों -
मर मिटते हैं
और ठहाकों जीते!
हम जंगल के
पारिजात हैं
हम काँटों में हँसते,
जीवन हुआ कसौटी,
खुद को -
रहे उम्र भर कसते
आँसू और हँसी दोनों को
हमने लिया सुभीते!
भीड़ झेलता
दरवाज़ा
आँगन बुनता सन्नाटा,
एक गाल पर चुंबन
दूजे पर वियोग का चाँटा,
जो भी मिला -
दे गया अनुभव
कुछ मीठे, कुछ तीते!
मट्ठा पीते
फूँक-फूँक हम
जले हुए हैं दूधों,
हम अषाढ़ के चातक
जीते हैं -
स्वाती की बूँदों
श्रम सीकर से भर देते हम
सुख के सागर रीते!
हम अगस्त्य के
वंशज ठहरे -
खारे आँसू पीते,
रोज़ सिसकियों -
मर मिटते हैं
और ठहाकों जीते!
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