अनुभूति में
रविशंकर की रचनाएँ —
नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं
अंजुमन में-
ग़ज़ल
कविताओं में
इस अंधड़ में
पौ फटते ही
गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज
संकलन में-
गाँव
में अलाव – दिन गाढ़े के आए
प्रेमगीत –
यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया
|
|
इस अंधड़ में
अंधड़ में -
दूब का
एक हल्की जुंबिश के बाद
ठहर जाना
झाड़ियों का
एक प्यार भरे झकझोर के बाद
सँभल जाना
पेड़ का
तीव्रतम झोंकों में
आलोड़ित विलोड़ित हो कर
अंतत: संयत हो जाना
और उससे भी आगे
आदमी का
तूफ़ानी थपेड़ों में
बार-बार
सँभलने की कोशिश में
तिनके-सा बिखर जाना
बताता है कि -
तेज़ अंधड़ में
बचाव के लिए
बनिस्पत पेड़ से ऊँचा होने के
दूब से भी छोटा होना
कहीं ज़्यादा ज़रूरी
और कहीं -
ज़्यादा सुविधाजनक है।
|