अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

भाग रहे हैं लोग सभी

दिन-दिन भर
लाखों के पीछे
भाग रहे हैं लोग सभी,
रात-रात सोई आँखों में
जाग रहे हैं लोग सभी!

मुसकाने का मन हो लेकिन
खुद पर ही आता है रोना
कोलाहल के बीच न जाने
सूना-सूना मन का कोना
रो-रो कर क्यों?
हँसने का कर
स्वांग रहे हैं लोग सभी!

गंगाजल पर कदम कदम में
यहाँ बड़े प्रतिबंध जड़े हैं
और वारुणी के स्वागत में,
घर-घर बंदनवार खड़े हैं
लम्हों से सदियों का बदला
माँग रहे हैं लोग सभी!

जहाँ रोज़ मरना पड़ता हो
वह जीना भी कैसा जीना
कदम-कदम पर लाचारी में,
घूँट खून का पड़ता पीना
रोज़-रोज़ खुद को सूली में
टाँग रहे हैं लोग सभी!
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter