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                    अनुभूति में निर्मल गुप्त की 
                    रचनाएँ- 
                     नई कविताओं में- 
                    तुम्हारे बिना अयोध्या 
					नाम की नदी 
					फूल का खेल 
					बाघखोर आदमी 
					रोटी का सपना 
                  छंदमुक्त में- 
                    इस नए घर में 
                    एक दैनिक यात्री की दिनचर्या 
                  एहतियात 
                    गतिमान ज़िंदगी  
                     घर लौटने पर 
                    डरे हुए लोग 
                  नहाती हुई लड़की 
                  पहला सबक 
                  बच्चे के बड़ा होने तक 
                    बयान  
                    मेरे ख्वाब 
                    लड़कियाँ उदास हैं 
                    हैरतंगेज़ 
                  रेलवे प्लेटफ़ार्म  | 
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 रेलवे प्लेटफ़ार्म 
यात्रा और यात्रा 
यही है मेरी अनवरत दिनचर्या 
रेलवे प्लेटफ़ार्म पर खड़े होकर 
प्राय: सोचा करता हूँ 
रेलवे प्लेटफ़ार्म तो 
किसी का स्थायी घर नहीं हो सकता 
यह तो बस एक पड़ाव होता है 
पल दो पल का 
वैसे भी किसी का भी 
स्थायी घर कहीं नहीं होता 
ठहराव होता है 
साँसों के चलते रहने तक का 
पर रेलवे प्लेटफ़ार्म पर 
रहने वाले उस मलंग की 
बात ही कुछ और है 
जो चलते-चलते 
सुख-दुख की 
स्थापित परिभाषा के 
पार निकल आया है 
वह कभी बेबात हँसता है 
तो कभी 
उदास हो जाता है 
तो टकटकी लगाकर 
ताकने लगता है आसमान को 
रेलवे प्लेटफ़ार्म के 
टिन शेड में लगे 
पंखे के ऐन ऊपर 
एक चिड़िया का घोंसला भी है- 
चिड़िया जान गई है- 
तेज़ी से घूमते पंखे के 
ऊपर से गुज़रकर 
घोंसले तक पहुँचने का 
तिलस्म- 
सच है- 
घर बसाना है 
तो मलंग बनना पड़ता है 
या फिर सीखनी पड़ती है 
चिड़िया की-सी 
सनसनीखेज़ जीवन शैली 
१ जून २००६ 
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