अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में निर्मल गुप्त की रचनाएँ-

नई कविताओं में-
तुम्हारे बिना अयोध्या
नाम की नदी
फूल का खेल
बाघखोर आदमी
रोटी का सपना

छंदमुक्त में-
इस नए घर में
एक दैनिक यात्री की दिनचर्या
एहतियात
गतिमान ज़िंदगी
घर लौटने पर
डरे हुए लोग
नहाती हुई लड़की
पहला सबक
बच्चे के बड़ा होने तक
बयान
मेरे ख्वाब
लड़कियाँ उदास हैं
हैरतंगेज़
रेलवे प्लेटफ़ार्म

 

घर लौटने पर

घर गंधाने लगा है
किसी अस्पताल की तरह
घर में सभी है
माँ है, पत्नी है, बहन है, भाभी है
पर सब लग रही हैं
किसी नर्स की तरह
यहाँ से वहाँ विचरण करतीं
रोगी की कराह से
अप्रभावित, स्पंदनहीन

लोग कहते हैं-
घर तो घर ही है
पहले था जैसा, वैसा ही
तुम ही बदल गए हो
या फिर
लंबे सफ़र की थकन के कारण
बीमार हो संभवत:
मैं सोचता हूँ-
बहुत दिनों बाद
घर लौटने पर
ऐसा क्यों लगता है?

१ जून २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter