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अनुभूति में निर्मल गुप्त की रचनाएँ-

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नाम की नदी
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एहतियात
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पहला सबक
बच्चे के बड़ा होने तक
बयान
मेरे ख्वाब
लड़कियाँ उदास हैं
हैरतंगेज़
रेलवे प्लेटफ़ार्म

 

नाम की नदी

सभी पुकारते हैं उसे
नदी के नाम से
पर बिना जल के भी
कोई नदी होती है भला।
कभी रही होगी वह
एक जीवंत नदी
आकाश की नीलिमा को
अपने आलिंगन में समेटे
कलकल करते जल से भरपूर।
तभी हुआ होगा इसका नामकरण
समय की धार के साथ
बहते-बहते वाष्पित हो गया
नदी का जल और बादलों ने भी
कर लिया नदी से किनारा
सभी ने भुला दिया नदी को
बस नाम चलता रहा।
अपनों की बेरुखी देख
सूख गई नदी ।
अब नदी कहीं नहीं
केवल नाम भर है
जिसमे बहता है
पाखण्ड, धर्मान्धता और स्वार्थ का
हाहाकारी जल।

११ अप्रैल २०११

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