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                    अनुभूति में निर्मल गुप्त की 
                    रचनाएँ- 
                     नई कविताओं में- 
                    तुम्हारे बिना अयोध्या 
					नाम की नदी 
					फूल का खेल 
					बाघखोर आदमी 
					रोटी का सपना 
                  छंदमुक्त में- 
                    इस नए घर में 
                    एक दैनिक यात्री की दिनचर्या 
                  एहतियात 
                    गतिमान ज़िंदगी  
                     घर लौटने पर 
                    डरे हुए लोग 
                  नहाती हुई लड़की 
                  पहला सबक 
                  बच्चे के बड़ा होने तक 
                    बयान  
                    मेरे ख्वाब 
                    लड़कियाँ उदास हैं 
                    हैरतंगेज़ 
                  रेलवे प्लेटफ़ार्म  | 
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डरे हुए लोग 
 
हम सभी डरे हुए हैं  
हम सभी सशंकित हैं  
हम सभी काटते हैं सारी रात  
जागते हुए  
हमे भय है  
यदि किसी की पलक झपकी  
तो हमलावर को मिला मौका  
हम पर वार करने का . 
 
हमारा अस्तित्व खतरे में है  
हम रोज़ सुनते -सुनाते हैं  
एक दूसरे को  
अपने उन वीर पूर्वजों के  
झूठे - सच्चे किस्से  
जो संगरक्षित हैं  
किसी उन्मादी शासक द्वारा  
बनवाए गए अपने ही  
ताम्बे के मकबरे में . 
हमारी रीढ़ की हड्डीओं में  
होता है रात भर कम्पन  
प्रायोजित इतिहास हमे रोमांचित  
तो करता है  
नींद भगाने का रसायन भी  
पैदा करता है  
लेकिन कोई प्रेरणा नहीं देता  
निराकार खतरे से संघर्ष के लिए  
खुद को तैयार करना मुश्किल है 
खतरा वहां कभी नहीं होता  
जहाँ हम उसे तलाश रहे होते हैं  
खतरा उस युद्घ के मैदान में  
नहीं होता  
जहाँ दुश्मन की शिनाख्त संभव है 
खतरा तो प्रकट होता है  
हमेशा अचानक वह आता है दबे पॉव 
हमरे अपनों के वेष में 
१४ दिसंबर २००९  |