अनुभूति में कमलेश
भट्ट कमल की रचनाएँ—
नई रचनाओं में—
उम्र आधी हो चली है
ऐसा लगता है
क्या हुआ
मुकद्दर
उसके जैसा
अंजुमन में—
झुलसता देखकर
न इसकी थाह है
नदी
नसीबों पर नहीं चलते
ना उम्मीदी में
पेड़ कटे तो
वहाँ पर
समंदर
हज़ारों बार गिरना है
हमारे ख्वाब की दुनिया
दोहों में—
छे दोहे
हाइकु में—
आठ हाइकु
होली हाइकु
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हाइकु
देख लेती हैं
जीवन के सपने
अंधी आँखें भी
धूल ढँकेगी
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन
आखिरी युद्ध
लड़ना है अकेले
मौत के साथ
कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना
पल को सही
तोड़ा तो जुगनू ने
रात का अहं
तुम्हीं बताओ
खुदा व भ्रष्टाचार
कहाँ नहीं है
छाँह की नहीं
ऊँचाई की होड़ है
युक्लिप्टसों में
समुद्र नहीं
परछाईं खुद की
लांघो तो जानें |