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अनुभूति में कमलेश भट्ट कमल की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
उम्र आधी हो चली है
ऐसा लगता है

क्या हुआ
मुकद्दर उसके जैसा

अंजुमन में—
झुलसता देखकर
न इसकी थाह है
नदी
नसीबों पर नहीं चलते
ना उम्मीदी में
पेड़ कटे तो
वहाँ पर
समंदर
हज़ारों बार गिरना है
हमारे ख्वाब की दुनिया

दोहों में—
छे दोहे

हाइकु में—
आठ हाइकु
होली हाइकु

  ना उम्मीदी में

नाउमीदी में भी अकसर गुल खिले उम्मीद के,
जिसने चाहे, रास्ते, उसको मिले उम्मीद के।

जोड़ने वाली कोई काबिल नज़र ही चाहिए,
हर तरफ़ बिखरे पड़े हैं सिलसिले उम्मीद के।

फिर नई उम्मीद ही आकर सहारा दे गई,
रास्ते में पाँव जब-जब भी हिले उम्मीद के।

दौलतों से, किस्मतों से जो नहीं जीते गए,
जीत लाएँगे पसीने वो किले उम्मीद के।।

कौन कहता है सफ़र में तुम अकेले रह गए,
साथ हैं अब भी तुम्हारे काफ़िले उम्मीद के।

१ मई २००५


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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