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ना उम्मीदी में
नाउमीदी में भी अकसर गुल खिले उम्मीद के,
जिसने चाहे, रास्ते, उसको मिले उम्मीद के।
जोड़ने वाली कोई काबिल नज़र ही चाहिए,
हर तरफ़ बिखरे पड़े हैं सिलसिले उम्मीद के।
फिर नई उम्मीद ही आकर सहारा दे गई,
रास्ते में पाँव जब-जब भी हिले उम्मीद के।
दौलतों से, किस्मतों से जो नहीं जीते गए,
जीत लाएँगे पसीने वो किले उम्मीद के।।
कौन कहता है सफ़र में तुम अकेले रह गए,
साथ हैं अब भी तुम्हारे काफ़िले उम्मीद के।
१ मई २००५
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