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नदी
पास रक्खेगी नहीं, सब कुछ लुटाएगी नदी
शंख सीपी रेत पानी, जो भी लाएगी नदी।
आज है, कल को कहीं यदि सूख जाएगी नदी
होंठ छूने को किसी का, छटपटाएगी नदी।
बैठना फुरसत से दो पल, पास जाकर तुम कभी
देखना, अपनी कहानी खुद सुनाएगी नदी।
साथ है कुछ दूर तक ही फिर सभी को छोड़कर
खुद समंदर में किसी दिन डूब जाएगी नदी।
हमने वर्षों विष पिलाकर आज़माया है बहुत
अब हमें भी विष पिलाकर आज़माएगी नदी।
१ मई २००५
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