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अनुभूति में कमलेश भट्ट कमल की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
उम्र आधी हो चली है
ऐसा लगता है

क्या हुआ
मुकद्दर उसके जैसा

अंजुमन में—
झुलसता देखकर
न इसकी थाह है
नदी
नसीबों पर नहीं चलते
ना उम्मीदी में
पेड़ कटे तो
वहाँ पर
समंदर
हज़ारों बार गिरना है
हमारे ख्वाब की दुनिया

दोहों में—
छे दोहे

हाइकु में—
आठ हाइकु
होली हाइकु

  समंदर

समंदर में उतर जाते हैं जो हैं तैरने वाले
किनारे पर भी डरते हैं तमाशा देखने वाले।

जो खुद को बेच देते हैं बहुत अच्छे वे फिर भी
सियासत में कई हैं मुल्क तक को बेचने वाले।

गए थे गाँव से लेकर कई चाहत कई सपने
कई फिक्रें लिए लौटे शहर से लौटने वाले।

बुराई सोचना है काम काले दिल के लोगों का
भलाई सोचते ही हैं भलाई सोचने वाले।

यकीनन झूठ की बस्ती यहाँ आबाद है लेकिन
बहुत से लोग ज़िंदा हैं अभी सच बोलने वाले।

१ मई २००५


 

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