अनुभूति में कमलेश
भट्ट कमल की रचनाएँ—
नई रचनाओं में—
उम्र आधी हो चली है
ऐसा लगता है
क्या हुआ
मुकद्दर
उसके जैसा
अंजुमन में—
झुलसता देखकर
न इसकी थाह है
नदी
नसीबों पर नहीं चलते
ना उम्मीदी में
पेड़ कटे तो
वहाँ पर
समंदर
हज़ारों बार गिरना है
हमारे ख्वाब की दुनिया
दोहों में—
छे दोहे
हाइकु में—
आठ हाइकु
होली हाइकु
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पेड़ कटे तो
पेड़ कटे तो छाँव कटी फिर आना छूटा चिड़ियों का
आँगन-आँगन रोज़ फुदकना गाना छूटा चिड़ियों का।
आँख जहाँ तक देख रही है चारों ओर बिछी बारूद
कैसे पाँव धरें धरती पर दाना छूटा चिड़ियों का।
कोई कब इल्ज़ाम लगा दे उन पर नफ़रत बोने का
इस डर से ही मंदिर-मस्ज़िद जाना छूटा चिड़ियों का।
मिट्टी के घर में इक कोना चिड़ियों का भी होता था
अब पत्थर के घर से आबोदाना छूटा चिड़ियों का।
टूट चुकी है इन्सानों की हिम्मत कल की आँधी से
लेकिन फिर भी आज न तिनके लाना छूटा चिड़ियों का।
१ मई २००५
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