छूकर होंठ
दहके हैं पलाश
गुलमोहरलौटे बहार
कब आपके साथ
प्रतीक्षा यही
बतलानी हैं
कहानी बहुत-सी
जो अनकही
-राकेश खंडेलवाल
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फागुनी हवा
गुनगुनी-सी धूप
लौटना तो है
-अनूप भार्गव
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टेसू के रंग
फागुन की उमंग
बौराया मन
बिखरे हँसी
गुलाल और रंग
फागुन संग
-प्रत्यक्षा
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मस्त जवानी
गागर सर पर
ठुमकी चाल
फागुन आया
सपनों का संसार
रंगीला लाया
चूड़ी खनके
लाल हरी नीली, ये
रूप सिंगार
पिचकारी ये
भर रंग बिरंगे
चोली भीगे रे
पनघट पे
उड़े पीली चुनरी
चली है नार
भीजे मन क्यों
अंग रंग के संग
उत पूत यों?
खलिहानों में
सूरज की किरनें
करे सिंगार
बीज खुशी के
खाद के संग प्यार
इसमें बो दो
वक्त के संग
चाहत भी बदले
रंग हज़ार
-देवी नंगरानी |