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अनुभूति में विनोद श्रीवास्तव की रचनाएँ-

गीतों में-
एक ख़ामोशी
किया नहीं बचाव
केवल अक्षर
गीत हम गाते नहीं
जैसे तुम सोच रहे साथी
छाया में बैठ
नदी का सपना
नदी के तीर पर ठहरे
प्यार लिखो हत्या लिख जाए
प्यास को मानसरोवर
बाँह में बाँह
रेत भर गया है
शाम सुबह महकी हुई

संकलन में-
हिंदी के १०० सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत-कौन मुसकाया

 

शाम-सुबह महकी हुई

शाम-सुबह महकी हुई
देह बहुत बहकी हुई
ऐसा रूप कि बंजर-सा मन
चंदन-चंदन हो गया।

रोम-रोम सपना सँवरा
पोर-पोर जीवन निखरा
अधरों की तृष्णा धोने
बूँद-बूँद जलधर बिखरा।

परिमल पल होने लगे
प्राण कहीं खोने लगे
ऐसा रूप कि
पतझर-सा मन
सावन-सावन होने लगा।

दूर हुई तनहाइयाँ
गमक उठी अमराइयाँ
घाटी में झरने उतरे
गले मिली परछाइयाँ।

फूलों-सा खिलता हुआ
लहारों-सा हिलता हुआ
ऐसा रूप कि
खण्डहर सा मन
मधुवन-मधुवन होने लगा।

डूबें भी उतराएँ भी
खिलें भी और कुम्हलाएँ भी
घुलें-मिलें तो कभी-कभी
मिलने मे शरमाएँ भी।

नील वरन गहराइयाँ
सासों में शहनाइयाँ
ऐसा रूप कि सरवर-सा मन
दर्पण-दर्पण हो गया।

१ जुलाई २००५

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