बाँह में बाँह
बाँह में बाँह डाले हुए
आइए हम चले घाटियों में
देखिए मेघ काले हुए
आइए हम चलें घाटियों में।
फूल से फूल की बतकही
देह में गुदगुदी कर रही
गंध से महमहाती-हुई
इन्द्रधनु-सी हवा फिर बही।
क्षण प्रणय के हवाले हुए
आइए हम चलें घाटियों में।
मृत्यु से भी अधिक वर्जना
हम करें स्नेह की सर्जना
हो रही है नशीली घटा
दूर आकाश में गर्जना।
बिजलियों के उजाले हुए
आइए हम चलें घाटियों में।
दूर भी दूरियाँ कीजिए
पावसी नीर में भीजिए
शाम बेहोश करने लगी
कुछ सहारा हमें दीजिए।
ये अधर प्यास वाले हुए
आइए हम चलें घाटियों में।
१ जुलाई २००५
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