केवल अक्षर
जब कोई साथ न हो तेरे
दिन-रात घेरते हों घेरे
तब केवल अक्षर होते हैं
जो तुझको संबल देते हैं।
हर ओर निराशा के बादल
फैला हो काजल ही काजल
हो मौन सभी की आँखों
सूखे आँसू भीगे आँचल।
जब चारों ओर अंधेरा हो
या कोसों दूर सवेरा हो
तब केवल अक्षर होते हैं।
जो तुझको सम्बल देते हैं।
संगीन तनी हो सीनों पर
आफत आई हो मीनों पर
आहट से मन घबराता हो
उँगलियाँ नहीं हों बीनो पर।
सपनों की शवयात्रा निकले
पत्थर क्या मोम नहीं पिघले
तब केवल अक्षर होते हैं
जो तुझको सम्बल देते हैं।
जब खुली हवा का संग न हो
जीने का कोई ढंग न हो
सच्चाई माटी मोल बिके
साबुत कोई भी अंग न हो।
अर्थात कलम पर गाज गिरे
या फिर कपोत से बाज भिडे
तब केवल अक्षर होते हैं
जो तुझको सम्बल देते हैं।
१ जुलाई २००५
|