नदी का सपना
पहले हमें नदी का सपना
आते-आते आता था
लेकिन अब मरुथल का कंपन
जाते-जाते जाएगा।
जब साँसों में आग नहीं थी
बादल तुम तो यहीं रहे
अब छाया की पड़ी ज़रूरत
आँचल तुम भी नहीं रहे।
पहले हमें नाम का जपना
आते-आते आया था
लेकिन अब परिचय का बंधन
जाते-जाते जाएगा।
हमें बताया गया कि मेला
मन की सारी पीर हरे
लेकिन उत्सव में होना तो
मन को और उदास करे।
पहले हमें गंध में रहना
आते-आते आया था
लेकिन अब प्राणों का चंदन
जाते-जाते जाएगा।
अब न डोलती
घर-आँगन में
महकी धूप महावर-सी
पर आँखों में तैर रही है
कोई शाम सरोवर-सी।
पहले हमें गीत में बहना
आते-आते आया था
लेकिन अब सुधियों का दंशन
जाते-जाते जाएगा।
१ जुलाई २००५
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