छाया में बैठ
छाया में बैठ कभी
सोने का मन
सोने का मन
थकान खोने का मन।
आँखों में घूम रहा
वासंती रूप-
वासंती रूप
कभी शरमाती धूप।
गंध भरे पल-छिन
संजोने का मन
संजोने का मन
स्नेह बीज बोने का मन।
पुरवाई ले चल तू
घाटी की ओर
घाटी की ओर
जहाँ नाचे मन-मोर।
फागुन के गीत
ग़ज़ल होने का मन
ग़ज़ल होने का मन
तन भिगोने का मन
बाँसुरिया बोल रही
अमृतमय बोल
अमृतमय बोल
रही सांसों में घोल।
सरवर में चन्द्रमा
डुबोने का मन
डुबोने का मन
लाज धोने का मन।
१ जुलाई २००५
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