प्यास को मानसरोवर
बंजर ही बंजर था
किसने हरा-भरा कर दिया
प्यास को मानसरोवर दिया।
अग्निशरों से बींध-बींध कर
छलनी कर दी काया
फेंक दिया तपती रेती पर
माँग रहा था छाया।
पतझर ही पतझर था
किसने फूलों का घरा दिया
अधर पर वंशी को धर दिया।
मंदिर घाट-हाट-मेले में
सुधियाँ थीं गहराई
उखड़े डेरे देख-देख कर
आँखें भर-भर आईं।
अक्षर ही अक्षर था
किसने प्राणों को स्वर दिया
कंठ को गीतों से भर दिया।
१ जुलाई २००५
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