अनुभूति में
श्याम निर्मम
की रचनाएँ
गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों
की पुतली
सुख हमको डाँटे
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वो आँखों की पुतली
ऐसे ही वो बड़े हो गये
पेड़ खजूरों-से
नहीं किसी को छाया दी
फिर, कैसे फल देते ?
अपनी ही
भाषा में मोहक नारे गढ़ते हैं,
कंधों को सीढ़ियाँ बनाकर ऊपर चढ़ते
हैं
मुट्ठी में सब कैद गनीमत-
नहीं मसल देते!
हम उनकी
कठपुतली उनके हाथों में नाचें,
वो आँखों की पुतली सबका भाग्य लिखा
बाँचे
बीते-बिगड़े-कल से बेहतर
अच्छा कल देते!
चरण पखारें
लोग आचरण बड़े निराले हैं,
ऊपर तो बगुले-से दिखते भीतर काले
हैं
कालिख के बदले गुलाल
कुछ
मुँह पर मल लेते!
कुछ पैदाइश,
मुँह में चम्मच सोने की लाये,
अपने हिस्से भूख अनादर, लाचारी आये
ढोर समझकर ही हमको-
कुछ भूसा-खल देते!
२८ जनवरी २०१३
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