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अनुभूति में श्याम निर्मम की रचनाएँ

गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों की पुतली
सुख हमको डाँटे
 

 

सुख हमको डाँटे

फूलों ने
वसंत आने पर गुलदस्ते बाँटे,
पर जाने क्यों अपने मन में
चुभे बहुत काँटे!

अम्मा रोगी
बाबूजी का चश्मा बना नहीं,
बच्चों की पिछली फीसों का कर्जा चुका नहीं
गेंदा हँसे जुही इठलाये टेसू मस्त झरे,
पर पुरवैया दर्द बढ़ाये
जड़े रोज चाँटे!

मँहगाई ने
कमर तोड़ दी गिरवी खेत पड़े,
सुता सयानी देख आँख से मीठी नींद उड़े
अमलतास कहकहे लगाये सोनजुही गाये,
दिन अपने ज्यों रमी खेलते
ताशों को फाँटे!

सम्बन्धों की
गरम रेत पर पाँव रहे जलते,
हुई अकारथ विवश जिन्दगी हाथ रहे मलते
गोरी धूप इन्द्रधनु रचती मुखरित क्षितिज हुआ,
पर सहमे दुख के आँगन में
सुख हमको डाँटे।


२८ जनवरी २०१३

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