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अनुभूति में श्याम निर्मम की रचनाएँ

गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों की पुतली
सुख हमको डाँटे
 

 

जितना खेल सकता खेल

जिन्दगी, इंजन बिना ही रेल,
ठेल, जितना ठेल सकता, ठेल!

पटरियाँ-
बचपन-जवानी हैं पास रहकर भी न मिल पातीं,
दूसरे का दुख समझतीं हैं पर किसी से कह नहीं पातीं।
है समस्या विष-बुझे शर-सी,
झेल, जितना झेल सकता, झेल!

है, गरीबी-
टूटने का नाम सुख लगाये कहकहों के दाम,
जब-बिखरना
-ही-नियति-उसकी-फर्क-क्या-तब-हो-सुबह-या-शाम
पापड़ों-सा हाल खस्ता है,
बेल, जितना बेल सकता, बेल!

है कभी-
जाना, कभी आना चिन्तकों-सा इसे दुहराना,
आदमी है जन्म का प्यासा मौत से कब रहा अनजाना
उम्र के अनगिन पड़ावों पर,
खेल, जितना खेल सकता, खेल!

२८ जनवरी २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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