जितना खेल सकता
खेल
जिन्दगी, इंजन बिना ही रेल,
ठेल, जितना ठेल सकता, ठेल!
पटरियाँ-
बचपन-जवानी हैं पास रहकर भी न मिल
पातीं,
दूसरे
का
दुख
समझतीं
हैं
पर
किसी
से कह नहीं पातीं।
है समस्या विष-बुझे शर-सी,
झेल, जितना झेल सकता, झेल!
है, गरीबी-
टूटने का नाम सुख लगाये कहकहों के
दाम,
जब-बिखरना-ही-नियति-उसकी-फर्क-क्या-तब-हो-सुबह-या-शाम
पापड़ों-सा हाल खस्ता है,
बेल, जितना बेल सकता, बेल!
है कभी-
जाना, कभी आना चिन्तकों-सा इसे
दुहराना,
आदमी है जन्म का प्यासा मौत से कब
रहा अनजाना
उम्र के अनगिन पड़ावों पर,
खेल, जितना खेल सकता, खेल!
२८ जनवरी २०१३