अनुभूति में
श्याम निर्मम
की रचनाएँ
गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों
की पुतली
सुख हमको डाँटे
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मौन किसका दोष
जेठ में-
सावन हुआ मदहोश किसका दोष,
सींकचों में कैद है निर्दोष
किसको दोष ?
कौन है-
जो पी गया सारे सुखों का रस,
काटता हमको समय है और हम बेबस
मुट्ठियों में बन्द है विश्वास,
मन में रोष!
किसका दोष ?
चाँदनी ही
आग की बन जाय जब पर्याय
चेतना गुमसुम रहे देखे ठगी निरुपाय
बहुओं का बल हुआ कमजोर
गरजे जोश!
किसका दोष ?
चादरों से
पाँव लम्बे हो गये जिनके,
पेट में घुटने दिये चुप सो गये
कितने
जीतने की चाहना लेकर
दौड़ में कछुआ हुआ खरगोश!
किसका दोष ?
२८ जनवरी २०१३
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