क्यों
सिंगार बिखरा-बिखरा
पानी पर
धूप की फुहार इन्द्रधनुष
उभरा-उभरा!
टिमक-टिमक
गुलमोहर झरता,
आँखों में रंगीनी भरता,
अपशकुनों से डरता-डरता
किरणों की
ज्योतित नगरी में रूपकलश
निखरा-निखरा!
ठुमक-ठुमक
प्यास गले उतरी,
मेघों की पालकी में बैठी
इक परी, पर वो भी कितनी
डरी-डरी रूपसी लगी
बैरागिन-सी क्यों सिंगार
बिखरा-बिखरा ?
२८ जनवरी २०१३