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अनुभूति में श्याम निर्मम की रचनाएँ

गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों की पुतली
सुख हमको डाँटे
 

 

तुम अमर बनो

तुम शिखर बनो
हम तो नींव हैं
गहरे में और भी धँसेंगे!

सूख गयी
सलिला प्राणों की
दर्दों के जलतरंग बज उठे,
बचपन के, यौवन के
मोहक मादक गुंजन
सपनों में सिरज उठे।
तुम मुखर बनो
हम तो मौन हैं
धड़कन के नगर में बसेंगे!

लिपटे हैं शाख-शाख
सोमरसी चितवन के
किसलय अहसास,
टूट गये
प्रकृतिजन्य
कल के सब दम्भी विश्वास।
तुम विपिन बनो
हम तो फूल हैं
झर-झर कर रेत पर हँसेंगे!

आँखों के
बरसाती बादल
उमड़-घुमड़ रोज ही बरसते,
होठों पर
प्यास के पठार
बूँद-बूँद नीर को तरसते।
तुम जलधि बनो
हम तो द्वीप हैं,
मोती से सीप में सजेंगे!

अँधियारा लील गया
मन के
उजियारे की आव,
कुछ ने ही पहचाने
तन के अभिशापित
अनुबन्धों के घाव।
तुम अमर बनो
हम तो जन्म हैं
बार-बार बाँहों में मृत्यु को कसेंगे!

२८ जनवरी २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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