अनुभूति में
श्याम निर्मम
की रचनाएँ
गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों
की पुतली
सुख हमको डाँटे
|
|
पूरा देश
हमारा घर
रोग बहुत हैं
लेकिन उनका कहीं निदान नहीं!
ये कैसी अनहोनी
जीवन विष पीते बीता,
डगर बढ़े हर रोज मगर ये अश्रु-पात्र रीता
चलते हुए सभी लगते पर हैं गतिमान नहीं!
आशा की
नैया को मन के सागर ने लूटा,
बीच धार का नाविक थका, किनारे का टूटा
संकल्पों की फसल उगाकर बने महान नहीं!
चेहरा-मोहरा
देख रोटियाँ मुँह तक हैं आतीं,
छोटा-सा है दीप आँधियाँ तेज बढ़ी जातीं
अगड़े-पिछड़े हुए बराबर दिखे समान नहीं!
रहे किरायेदार
सदा से हम तन के घर में,
जख्मी पंछी उड़ता है परवाज लिये पर में
पूरा देश हमारा घर, पर एक मकान नहीं!
२८ जनवरी २०१३
|