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अनुभूति में श्याम निर्मम की रचनाएँ

गीतों में-
क्यों सिंगार बिखरा-बिखरा
जितना खेल सकता खेल
जीते हुए हार जाते हैं
तुम अमर बनो
दिखे नहीं छाया
पूरा देश हमारा घर
मौन किसका दोष
रोशनी का तूर्य बन
वो आँखों की पुतली
सुख हमको डाँटे
 

 

दिखे नहीं छाया

नये साल में
हमने कोई गीत नहीं गाया,
जाने किन-किन विपदाओं का घिरा रहा साया!

स्ते
चलते-चलते अपना रस्ता भूल गये,
मंजिल तक कैसे पहुँचेंगे टूट उसूल गये।
शिखरों की ऊँचाई नापे-
थकी-थकी काया!

असफलता का
बोझ मनों सा मन पर भारी है,
इच्छाओं पर बेरहमी की चलती आरी है।
अपनेपन को दर्शाने का
भाव नहीं भाया!

आशा औ‘
विश्वासों में ये जीवन बीत गया,
सपनों का घट भरा-भरा पर यूँ ही रीत गया।
धूप कड़ी पर चलना कोसों
दिखे नहीं छाया!


२८ जनवरी २०१३

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