अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सरिता शर्मा की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ पलों के लिये
ओस गिरती है उदासी की
तन की सीपी
बेटी
मैं पिघलती बर्फ की चट्टान
रात का आकाश


सवैये में-
मीरा


मुक्तक में-
बीस मुक्तक

दोहों में-
दर्द के दोहे
प्रेम के दोहे
भक्ति के दोहे
वैराग्य के दोहे

संकलन में-
होली है- आए ऋतुराज

शुभ दीपावली- दीप
शुभ दीपावली- माटी के दीपक

 

वैराग्य के दोहे

डाल-डाल पर नव सुमन, खिले और मुरझाय,
आते जाते जीव की, कौन गाँठ सुरझाय ।

टूटी तन कै बाँसुरी, बिखरा मन का गीत,
पंछी उड़ा अनन्त में, ये ही जग की रीत।

लाख बेसुरा हो गया, ये जीवन का राग,
फिर भी इससे मोह है, पूरा नही विराग।

सब साधन, सुविधा सुलभ, फिर भी कैसा रोग,
धन की अंधी दौड़ में, शामिल हैं सब लोग।

गीत काकली मौन हो, इतना चीखे काग,
अपनी-अपनी ढ़ोलकी, अपना-अपना राग ।

१ जून २००५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter