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तन की सीपी
तन की सीपी में छिपा हुआ
मन का मोती पावन दे दूँ
अब तक न मिला जो तुम्हें कहीं
आओ वह अपनापन दे दूँ
यह लपट लपट मरुथल
दो पल ठहरो तो पाँव गहूँ
चलने दो अपने साथ अगर
तो बनकर ठंडी छाँव रहूँ
जब चलो तुम्हें बादल दे दूँ
जब थमो तुम्हें
सावन दे दूँ
व्यवहार नियति का अलबेला
कुछ फूलों सा कुछ पत्थर सा
आये-जाए इस जीवन में
सुख सपने सा दुःख ठोकर सा
आओ सब सपने सच कर दूँ
ठोकर को
निर्वासन दे दूँ
तुम हँसो तुम्हारे हँसने से
कोना- कोना खिल जाता है
गाओ कि तुम्हारे गाने से
मुझको सब कुछ मिल जाता है
मन करता है इसके बदले
साँसें गिन दूँ,
जीवन दे दूँ
१ जून २००५
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