कुछ पलों के
लिये
कुछ पलों के लिये आओ मिल जाएँ हम
खुशबुओं की तरह बादलों की तरह
भूल जाएँ चलो मान अभिमान को
सूफियों की तरह पागलों
की तरह!
चल पड़ें आज कोलाहलों से परे
रिक्त कर लें हृदय हलचलों से भरे
धड़कनों में बुनें राग अनुराग का
नृत्य करती हुई पायलों
की तरह!
वर्जना के जगत में सहज भूल सा
प्यार खिलता रहा जंगली फूल सा
धमनियों में घुला चाहतों का ज़हर
हम महकने लगे संदलों
की तरह!
१ जून २००५
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