ओस गिरती है
उदासी की
ओस गिरती है उदासी की
पत्तियों सा भीगता है मन
उँगलियों पर गिने जाते हैं
ये अकेले अनमने से दिन
साँस भी कब तक लिये डोले
हरसिंगारी खुशबुओं का ऋण
खुद ब खुद थम सा गया है शोर
दूर तक हैं रास्ते निर्जन
मिल गया सब कुछ मगर फिर भी
अजनबी सी चाह बाकी है
मंजिलों को छू लिया हमने
और अब भी राह बाकी है
बाहरी दुनिया भरी पूरी
भीतरी दुनिया बड़ी निर्धन
१ जून २००५
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