रात का आकाश
रात का आकाश तारों से भरा है
किन्तु मेरा एक भी
तारा नही है!
तुम गए
जिस पल उसी पल में थमी हूँ
मैं समय की आँख में उतरी नमी हूँ
बाँध गठरी ला सके बीते दिनों की
क्या कहीं कोई वो
बंजारा नही है!
सृष्टि क्या
केवल क्षरण की भूमिका है
जन्म क्या केवल मरण की भूमिका है
श्वास हर पल पाश होती जा रही है
और जीवन से बड़ी
कारा नही है!
१ जून २००५
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