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बीस मुक्तक
(१)
प्राण को प्रीत से संवारो तो
तुम अहंकार मन का मारो तो
श्याम वैकुंठ छोड आयेंगे
द्रोपदी की तरह पुकारो तो।
(२)
सारी दुनिया से दूर हो जाऊं
तेरी आखों का नूर हो जाऊं ।
तेरी राधा बनूं, बनूं न बनूं
तेरी मीरा जरूर हो जाऊं ।।
(३)
आज सब मन की मन में रहने दो
दर्द मेरा है मुझको सहने दो
शब्द ने अर्थ खो दिये अपने
आँसुओं को ही बात कहने दो।
(४)
आज होठों से हम न बोलंेगे
सिर्फ दिल की किताब खोलेंगे
इस क़दर ज़ार्रज़ार रोयेंगे
आँसुओं से तुम्हें डुबो लेंगे।
(५)
अब तो हद से गुजर के देखेंगे
कुछ नया काम कर के देखेंगे
जिसकी बाहों में जी नहीं पाये,
उसकी बाहों में मर के देखेंगे।
(६)
सब सरे आम कर दिया तूने
क्या बड़ा काम कर दिया तूने
जिसने तेरे लिये जहाँ छोड़ा,
उसको बदनाम कर दिया तूने ।
(७)
अपनी धड़कन बना लिया हमने
गीत सा गुनगुना लिया हमने
यूँ हकीकत में पा सके न तुम्हें
तुमको ख्वाबों में पा लिया हमने।
(८)
प्रेम का दान कम नहीं होता
भक्ति का गान कम नहीं होता
लाख जुगनू विरोध करते र्हों
सूर्य का मान कम नहीं होता।
(९)
पहले कमरे की खिड़कियाँ खोलो
फिर हवाओं में खुशबुएँ घोलो
सह न पाउँगी तल्खियाँ हमदम
मुझसे बोलो तो प्यार से बोलो।
(१०)
दर्द और सोज़ बन गयी होती
सिर्फ इक खोज बन गयी होती
जिन्दगी को जो तुम्ा़ न मिलते अगर
जिन्दगी बोझ बन गयी होती
(११)
राह में साथ यूँ न छोड़ो तुम
दिल के दरपन को यूँ न तोड़ो तुम
मैं नदी हूँ मेरी दिशा तय र्है
मेरी धारा को यूँ न मोड़ो तुम।
(१२)
प्यार का एक सिलसिला हूँ मैं
गीर्तगज़लों का काफिला हूँ मैं
झूठ मुझको न तोड़ पायेगा
अनकहे सत्य की शिला हूँ मैं
(१३)
सूखे पनघट की गागरी हूँ मैं
फिर भी कितनी भरी भरी हूँ मैं
तेरे घर की मैं चांदनी न सही
तेरे आँगन की देहरी हूँ मैं
(१४)
देहरी जब भी पार करता है
क्या कभी तू विचार करता है
तेरे कदमों की इक छुअन के लिये
दिल मेरा इन्तजार करता है
(१५)
इन्तजार इम्तहान होता है
दिल का सच्चा बयान होता है
बेकरारी के एसे आलम में
हर बशर बेजुबान होता है
(१६)
प्यार का इम्तहान ले लेना
सारे तीर्रोकमान ले लेना
बस कभी रूठना नहीं हमसे
तुम जो चाहो तो जान ले लेना।
(१७)
जान तुम पर निसार करते हैं
पतझरों को बहार करते हैं
तुमको कैसे बतायें ऐ हमदम
किस कदर तुमसे प्यार करते हैं
(१८)
खूबसूरत हसीं नजारे हैं
रात है, चांद है, सितारे हैं
दे रही है गवाहियां हर शै
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
(१९)
रंग कुछ और ही चढ़ा होता
इक नया आचरण गढ़ा होता
तुमने गोकुल की गोपियों से अगर
प्रेम का व्याकरण पढ़ा होता।
(२०)
चिठि्ठयों के जवाब महके हैं
हसरतों के गुलाब महके हैं
तुमसे होने लगी मुलाकातें
नींद महकी है ख्वाब महके हैं
१ जून २००५
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