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अनुभूति में रोहित रूसिया की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
एक पंछी ढूँढता है
क्या कहें क्या ना कहें
जब भी लिखना जो भी लिखना
प्रेम में भीगे हुए कुछ फूल

सिकुड़ गई क्यों

गीतों में-
अब नहीं आतीं
एक तिनके का सहारा
नदी की धार सी संवेदनाएँ
बाहर आलीशान
मेरा छूट गया गाँव
है कौन जो भीतर रहता है

 

प्रेम में भीगे हुए कुछ फूल

तुम्हारा साथ देंगे दूर तक
प्रेम में भीगे हुए कुछ फूल
अपने सूखने के
बाद भी

पंखुरी पर
बाँसुरी से गीत गाते पल रहेंगे
रंग फीके हो भले पर प्यार के संबल रहेंगे
गंध मीठी सी मधुर मकरंद की यों ही रहेगी
हाँ, समय के बीतने के
बाद भी

था कहा तुमने
जो बिछुड़ेंगे तो मिल न पायेंगे
बस समय की धार में डूबेंगे और बह जायेंगे
क्यों मगर उतना लबालब ही भरा है
प्रेम का घट रीतने के
बाद भी

जिन लकीरों ने
लिखी थी हाथ और माथे पे खुशबू
वक्त ने पानी मिला कर धो दिया किस्मत का जादू
एक अरसा हो गया पर दिल नहीं बदला
अभी भी साथ तेरा छूटने के
बाद भी

३ फरवरी २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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