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बाहर आलीशान
बाहर आलीशान
भीतर से बहुत टूटे हुए घर
बदलते, मौसमों की तरह
सब नेह के सुर
जो थे कोमल हृदय
लगने लगे अब जानवर के खुर
मुंडेरों पर सजा आये हैं सब ही
नीव के पत्थर
बाहर आलीशान
भीतर से बहुत टूटे हुए घर
बड़ी बेचैन होकर
घूमती हैं अब हवाएँ
कोई सुनता नहीं है अब
किसी की भी सदायें
लिए ऊँची उड़ानों की उम्मीदें,
कतरे हुए पर
बाहर आलीशान
भीतर से बहुत टूटे हुए घर
सजे दीखते हैं अब तो
हाट जैसे रिश्ते सारे
सतह पर राख
भीतर हैं सुलगते से अंगारे
सभी के जिस्म पर चिपके हुए हैं
मतलबी सर
बाहर आलीशान
भीतर से बहुत टूटे हुए घर
२९ अक्तूबर २०१२
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