है कौन जो भीतर रहता है
है कौन जो भीतर
रहता है
है कौन जो मुझमे नाज़िर है
जीवन के
जितने पहलू हैं
तुम सब पर एक नज़र डालो
इच्छा हो जो जो करने की
रोको मत उसको कर डालो
तुम चाहोगे
तो हार मिले
चाहो तो
मंजिल हाज़िर है
है कौन जो भीतर
रहता है
है कौन जो मुझमे नाज़िर है
ये तन तो
जैसे माटी है
जैसे ढालो ढल जायेगा
पर मन की तेज उडानों को
काबू कैसे कर पायेगा ?
ये तन तो
आखिर अपना है
पर मन
क्यों यहाँ मुहाज़िर है
है कौन जो भीतर
रहता है
है कौन जो मुझमे नाज़िर है
२९ अक्तूबर २०१२
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